रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई – 20 Best Ramayan ki Chaupai

आइये आज के इस लेख में हम भक्तिमय रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई (Ramayan ki Chaupai) का अमृतपान करे! जी हां, आज का यह लेख रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई के बारे में होने वाला है जिसके बारे में यह मान्यताए प्रचलित है की उनका पाठ करने से प्रभु श्री राम की इन चोपाइओ का पाठ करने वालो पर अच्छी कृपा होती है और उनके आशीर्वाद हंमेशा उनपर बने रहते है.

रामचरित मानस की बात करे तो हिंदू धर्म में रामायण का विशेष स्थान है। हिंदू धर्म में रामायण का विशेष महत्व है। यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कहानी है जिन्होंने मानव जीवन के धर्म की मिसाल पेश की है।

रामायण के लेखक महर्षि वाल्मीकि थे। रामायण में आपको तुलसीदास की कई चौपाइयां मिल जाएंगी। यदि मनुष्य इन रामायण चौपाई को पढ़ ले और उसका अर्थ समझ ले तो जान ले कि उसका जीवन सफल है। रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई (Ramayan ki Chaupai) के जाप से जीवन की विभिन्न प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई (Ramayan ki Chaupai)

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई: आइये अब हम उन रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई के बारे में बात करते है जिनको रामायण ग्रंथ में सबसे अधिक प्रभावशाली और पाठक के लिए फायदेमंद बताया गया है, आये देखते है वह कौन कौनसी है:

बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई।।

अर्थ : सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।

जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥

अर्थ : जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्रभु की कृपा होती है।

कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥

अर्थ : हे तात ! मेरा प्रणाम और आपसे निवेदन है – हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम हैं (आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है), तथापि दीन-दुःखियों पर दया करना आपका विरद (प्रकृति) है, अतः हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए (मेरे सारे कष्टों को दूर कीजिए)॥

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

अर्थ : हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | Ramayan ki Chaupai

जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

अर्थ : (शिवजी कहते हैं) हे भवानी सुनो – जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।

एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥

अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं।

करमनास जल सुरसरि परई, तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना, बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।।

अर्थ: कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।

अनुचित उचित काज कछु होई, समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं, कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।

अर्थ: किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।

ह्रदय बिचारति बारहिं बारा, कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे, निशाचर सुभट महाबल भारे।।

अर्थ: जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा। मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं और राक्षस योद्धा तो महाबलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

अर्थ : हे नाथ ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ विभिन्न प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है।

श्याम गात राजीव बिलोचन, दीन बंधु प्रणतारति मोचन।
अनुज जानकी सहित निरंतर, बसहु राम नृप मम उर अन्दर।।

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे श्रीरामचंद्रजी ! आप श्यामल शरीर, कमल के समान नेत्र वाले, दीनबंधु और संकट को हरने वाले हैं। हे राजा रामचंद्रजी आप निरंतर लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोई पाकी॥
धन्य घरी सोई जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥

अर्थ : वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य है, जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखंड भक्ति हो। धन की तीन गतियां होती हैं – दान, भोग और नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष ना देता है, ना भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | Ramayan ki Chaupai

एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥

अर्थ : हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषयभोग नहीं है (इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या) स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष पी लेते हैं।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥

अर्थ : जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं। (मन में) ऐसा कहकर शिव भगवान हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | Ramayan ki Chaupai

धन्य देश सो जहं सुरसरी। धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥
धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥

अर्थ : वह देश धन्य है, जहां गंगा जी बहती हैं। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तुम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥

अर्थ : मोह ही जिनका मूल है, ऐसे (अज्ञानजनित), बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो और रघुकुल के स्वामी, कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचंद्रजी का भजन करो।

अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन, बसहु निरंतर जन मन कानन।।

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करने वाले हैं।

मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी

भावार्थ:- जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है, वो दशरथ नंदन श्री राम है वो मुझ पर अपनी कृपा करे।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा

भावार्थ:- जो भगवान श्री राम ने पहले से ही रच रखा है,वही होगा। हम्हारे कुछ करने से वो बदल नही सकता।

हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी

भावार्थ:- बुरे समय में यह चार चीजे हमेशा परखी जाती है, धैर्य, मित्र, पत्नी और धर्म।

 

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Conclusion

आशा है इस लेख के माध्यम से अपने 20 रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई का रसपान किया होगा और ये वह Ramayan ki Chaupai है जिन्हे लोकमान्यताओं के अनुसार रामायण की best चोपाइओ में से एक माना जाता है जिसके पठन के बाद भगवान राम उनपर प्रसन्न होते है और आशीर्वाद सदैव बनाये रखते है.  निवेदन है की इस लेख को कृपया उन हरिभक्तों से शेयर जरूर करे जो तन मन से प्रभु हरी की आराधना करना चाहते है! बहुत बहुत आभार।

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