Ras ki Paribhasha in Hindi – रस की परिभाषा, अंग, प्रकार कितने है?

आज के लेख में हम जानेंगे Ras ki Paribhasha. यानी रस का मतलब क्या होता है? रस किसे कहते है? रस की उत्पत्ति किसने की या कैसे हुई? Ras meaning in Hindi.. इसके बारे में विस्तार से आपको इस लेख में जानकारी दी जाएगी तो आपसे निवदेन है की आज का यह Ras ki Paribhasha का लेख पूरा पढ़े और जानकारी हांसिल करे.

तो हम रस किसे कहते है, रस के अंग कितने होते है तथा रस के प्रकार कितने होते है यह सब जानने वाले है लेकिन लेख की शुरुआत करते हुए आये सबसे पहले यह जान लेते है की रस आखिरकार किसे कहते है यानि रस का मतलब क्या होता है(Ras Meaning in Hindi).

रस किसे कहते हैं?

Ras ki Paribhasha: दोस्तों रस इस शब्द को कही तरीको से आजतक जोड़ा गया है! यानि कविता, कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने या सुनने से एवं नाटक को देखने से जिस आनन्द की हमें प्राप्ति या कहलो अनुभूति होती है, उसे ‘रस‘ कहते हैं। रस काव्य की आत्मा कहा गया है।

आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है—’वाक्यं रसात्मकं काव्यं‘ अर्थात् रसात्मक वाक्य काव्य है। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में व्याख्या की है- ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः‘ अर्थात् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों(Ras ki Paribhasha) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं— स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते हैं।

रस के प्रमुख अंग कौनसे है?

Ras ki Paribhasha जानने के बाद ए अब हम रस के अंग कितने है इसके बारे में माहिती इकट्ठी करे! रस की अवधारणा काफी गूढ़ मानी जाती है और उसी को पूर्णता प्रदान करने में या clarify करने के लिए उनके प्रमुख चार अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

  • स्थायी भाव
  • विभाव
  • अनुभाव
  • संचारी भाव

1. स्थायी भाव

रस का पहला एवं सर्वप्रमुख अंग है स्थायी भाव! भाव शब्द की उत्पत्ति ‘भ्‘ धातु से हुई है। जिसका अर्थ है विद्यमान या संपन्न होना। अतः जो भाव मन में सदा अभिज्ञान ज्ञात रूप में विद्यमान रहता है उसे स्थिर या स्थायी भाव(Ras ki Paribhasha) कहते हैं। जब स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है तो वह रस रूप में व्यक्त हो जाते हैं।
स्थायी भावों की कुल संख्या ग्यारह है – रति, हास्य, क्रोध, शोक, उत्साह, भय, जुगुप्सा (घृणा), वत्सल, आश्चर्य, दास्य या भक्त और विस्मय।

2. विभाव

जो व्यक्ति, परिस्थिति या वस्तु स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उसे विभाव कहते हैं। विभाव निम्न दो प्रकार होते हैं।

(I). आलम्बन विभाव – आलम्बन विभाव उन्हें कहते हैं जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं!
जैसे: नायक-नायिका, प्रेमी-प्रेमिका

(II). उद्दीपन विभाव – आश्रय के मन में भावों को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाह्य चेष्टाओं(Ras ki Paribhasha) और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे: प्रेमिका को देखकर प्रेमी के मन में आकर्षण (रति भाव) उत्पन्न होता है.

3. अनुभाव

आलंबन और उद्दीपन के कारण जो कार्य होता है, उसे अनुभाव कहते हैं। शास्त्र के अनुसार आश्रय के मनोगत भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती है। अनुभाव रस योजना का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है।

4. संचारी भाव

संचारी भाव वे कहलाते है जिनका कोई स्थायी कार्य नहीं होता । यह भाव तत्काल बनते हैं एवं मिटते हैं। संचारी भाव रस का अंतिम महत्वपूर्ण अंग है।

संचारी भाव की संख्या 33 मानी गयी है-

  • निर्वेद
  • आवेग
  • दैन्य
  • श्रम
  • मद
  • जड़ता
  • उग्रता
  • मोह
  • विबोध
  • स्वप्न
  • अपस्मार
  • गर्व
  • मरण
  • आलस्य
  • अमर्ष
  • निद्रा
  • अवहित्था
  • उत्सुकता
  • उन्माद
  • शंका
  • स्मृति
  • मति
  • व्याधि
  • संत्रास
  • लज्जा
  • हर्ष
  • असूया
  • विषाद
  • धृति
  • चपलता
  • ग्लानि
  • चिन्ता
  • वितर्क

स्थायी भाव उत्पन्न होकर नष्ट नहीं होते और संचारी भाव पानी के बुलबुलों की भाँति बनते-मिटते रहते हैं। प्रत्येक रस का स्थायी भाव नियत है, जबकि एक ही संचारी भाव अनेक रसों के साथ रह सकता है। इन्हीं विभाव, अनुभाव(Ras ki Paribhasha) और संचारी भाव के संयोग से स्थायी भाव रस दशा को प्राप्त होता है।

रस के प्रकार और स्थायी भाव

Ras ki Paribhasha: रस 11 प्रकार के होते है और स्थाई भाव भी 11 ही होते हैं।

रस स्थायी भाव
श्रृंगार रस रति
हास्य रस हास
करुण रस शोक
वीर रस उत्साह
अद्भुत रस आश्चर्य, विस्मय
भयानक रस भय
रौद्र रस क्रोध
वीभत्स रस जुगुप्सा
शांत रस निर्वेद या निर्वृती
वात्सल्य रस रति
भक्ति रस अनुराग

आये अब Ras ki Paribhasha के इस लेख में हम आखिर में रसो के कितने प्रकार होते है इसके बारे में विस्तार से जान लेते है(साथ ही में संस्कृत श्लोक भी दिए गए है उदाहरण साझा करने के लिए):

Ras ki Paribhasha
Ras ki Paribhasha

1. श्रृंगार रस

जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।

श्रृंगार रस का स्थाई भाव – रति होता हैं।

उदाहरण :-

राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।

2. हास्य रस

किसी वस्तु या व्यक्ति की हास्यास्पद घटनाओं और भावनाओं से संबंधित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को हास्य रस कहते हैं।

हास्य रस का स्थाई भाव – हसी होता हैं।

उदाहरण :-

इस दौड़-धूप में क्या रखा हैं।
आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की पूजा हैं।।
इससे न तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद।
तन का दुबलापन खो देती।।

3. करुण रस

अगला है करूण रस, किसी प्रकार की दुख से संबंधित अनुभूति से प्ररेति काव्य रचना को पढ़ने से करुण रस उत्पन्न होता हैं, जिसे शोक भी कहा जाता है।

करुण रस का स्थाई भाव – शोक होता हैं।

उदाहरण :-

शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूपु सीलु बलू तेजु बखानी।।
करहि विलाप अनेक प्रकारा।
परिहि चूमि तल बारहि बारा।।

4. वीर रस

वीर रस की उत्पत्ति तब होती हैं जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं.

वीर रस का स्थाई भाव – उत्साह होता हैं।

उदाहरण :-

मैं सत्य कहता हूं, सके सुकुमार न मानो मुझे।
यमराज से भी युद्व को, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।

5. अद्भुत रस

जब किसी अलौकिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं।

अदभुत रस का स्थाई भाव – आश्चर्य होता हैं।

उदाहरण :-

बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।

6. भयानक रस

जहां भयानक वस्तुओं,व्यक्ति को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों/घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर भयानक रस होता हैं।

भयानक रस का स्थाई भाव – भय होता हैं।

उदाहरण :-

उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी।
चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।।

7. रौद्र रस

जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर हृदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर रौद्र रस होता हैं। इस प्रकार की रचनाओं में उत्प्रेरण सम्बन्धी विवरण होता हैं।

रौद्र रस का स्थाई भाव – क्रोध होता हैं।

उदाहरण :-

श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूल कर, करतल युगल मलने लगे।।

8. वीभत्स रस

जिस काव्य रचना में घृणात्तम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो जिसे देखकर या सुनकर हमें अंदर से बहुत अजीब लगें लगे वहां पर वीभत्स रस होता हैं।

वीभत्स रस का स्थाई भाव – घ्रणा होता हैं।

उदाहरण :-

सिर पर बैठियों काक, आँख दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभही सियार अति, आनुदित ऊर धारत।।

9. शांत रस

वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद यानी शांति के भाव उत्पन्न होते हैं या अहसास भी होता है उसे शांत रस कहते हैं।

शांत रस का स्थाई भाव – निर्वेद होता हैं।

उदाहरण :-

मन रे तन कागज का पुतला,
लगे बुद विनसि जाए झण में,
गरब करै क्यों इतना।

10. वात्सल्य रस

जब किसी अपने को या प्यारे से बच्चे को देखकर उनके साथ हमें भी खेलने का मन करे या उसे दुलारने का मन हो तभी वातसल्य रस उत्पन्न हुआ ऐसा कहते है।

वात्सल्य रस का स्थाई भाव – स्नेह होता हैं।

उदाहरण :-

किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन।
विम्ब फकरिवे घावत।।

11. भक्ति रस

जिस काव्य रचना में ईश्वर के प्रति भक्ति और विश्वास के भाव उत्पन्न हो वहां पर भक्ति रस होता हैं।

भक्ति रस का स्थाई भाव – वैराग्य/अनुराग होता हैं।

उदाहरण :-

राम जपु, राम जपु, राम जपु, वावरे।
घोर भव नीर निधि, नाम निज नाव रे।।

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Conclusion

आशा रखते है आज के इस लेख Ras ki Paribhasha की मदद से आपको रस के प्रकार, अंग, रस का अर्थ यानी Ras ki Paribhasha क्या है यह सब विस्तारपूर्वक जानने और समझने को मिला होगा। अगर सच में यह लेख आपको Ras ki Paribhasha और रस के बारे में सबकुछ समझने में मददगार साबित हुआ है तो हमारी विनती है की इस लेख जो Ras ki Paribhasha के बारे में है, हो सके उतना अपने दोस्तों और साहित्य प्रेमिओ के साथ शेयर करे! धन्यवाद!

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