Best 5 देश भक्ति कविता, मन को लुभाने वाली देश भक्ति पर छोटी कविता

नमस्कार मित्रो, 15 अगस्त आ रहा है! वह दिन जो हमारे भारत की आजादी को तो दर्शाता ही है लेकिन अनेकता में एकता और हमारे देशप्रेम को उजागर करने वाला एक त्यौहार भी है. इस अवसर पर हम आपके लिए इस लेख में Best 5 देश भक्ति कविता लेकर आए है जिसे अगर आप अपने स्कूल में किसी स्पीच देने की स्पर्धा में रहे है तो यह 5 देश भक्ति पर छोटी कविता हमने यहाँ पर आपके लिए उपलब्ध करवाई है जिसे आप पढ़कर तैयारी कर सकते हो और स्कूल तथा कॉलेज में सभी अध्यापक, स्टूडेंट्स या श्रोताओ का दिल जित सकते हो और अपना देशप्रेम व्यक्त कर सकते हो.

तो आइये अब बिना किसी देरी किये यह Best 5 देश भक्ति कविता आपको एक एक करके बताये:

Best 5 देश भक्ति कविता (Desh bhakti Kavita in hindi)

1. मेरा वतन वही है (इक़बाल) देश भक्ति कविता-

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया,
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया,
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था,
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से,
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से,
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से,
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना,
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना,
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना,
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है,
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है,
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है,
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

2. भारत की आरती (शमशेर बहादुर सिंह) Desh bhakti Kavita-

भारत की आरती
देश-देश की स्वतंत्रता देवी
आज अमित प्रेम से उतारती ।

निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में
जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में
गाते हों घर में हों या रण में
भारत की लोकतंत्र भारती।

गर्व आज करता है एशिया
अरब, चीन, मिस्र, हिंद-एशिया
उत्तर की लोक संघ शक्तियां
युग-युग की आशाएं वारतीं।

साम्राज्य पूंजी का क्षत होवे
ऊंच-नीच का विधान नत होवे
साधिकार जनता उन्नत होवे
जो समाजवाद जय पुकारती।

जन का विश्वास ही हिमालय है
भारत का जन-मन ही गंगा है
हिन्द महासागर लोकाशय है
यही शक्ति सत्य को उभारती।

यह किसान कमकर की भूमि है
पावन बलिदानों की भूमि है
भव के अरमानों की भूमि है
मानव इतिहास को संवारती।

3. ललकार (वहीद) देश भक्ति कविता-

तूने गर ठान लिया जुल्म ही करने के लिए,
हम भी तैयार हैं अब जी से गुज़रने के लिए।

अब नहीं हिंद वह जिसको दबाए बैठे थे,
जाग उठे नींद से, हां हम तो सम्हलने के लिए।

हाय, भारत को किया तूने है ग़ारत कैसा!
लूटकर छोड़ दिया हमको तो मरने के लिए।

भीख मंगवाई है दर-दर हमंे भूखा मारा,
हिंद का माल विलायत को ही भरने के लिए।

लाजपत, गांधी व शौकत का बजाकर डंका,
सीना खोले हैं खड़े गोलियां खाने के लिए।

तोप चरख़े की बनाकर तुम्हें मारेंगे हम,
अब न छोड़ेंगे तुम्हें फिर से उभरने के लिए।

दास, शौकत व मुहम्मद को बनाकर कै़दी,
छेड़ा है हिंद को अब सामना करने के लिए।

बच्चे से बूढ़े तलक आज हैं तैयार सभी,
डाल दो हथकड़ियां जेल को भरने के लिए।

उठो, आओ, चलो, अब फौज में भर्ती हो लो!
भारत-भूमि का भी तो कुछ काम करने के लिए।

ख़ां साहब और राय बहादुर की पदवी लेकर,
जी-हुजूरी और गुलामी ही है करने के लिए।

ईश्वर से प्रार्थना करता है यही आज ‘वहीद’,
शक्ति मिल जाए हमें देश पे मरने के लिए।

4. घायल हिन्दुस्तान (हरिवंशराय बच्चन) Desh bhakti Kavita-

मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

दबी हुई दुबकी बैठी हैं
कलरवकारी चार दिशाएँ,
ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं
नभ की चिर गतिमान हवाएँ,

अंबर के आनन के ऊपर
एक मुर्दनी-सी छाई है,

एक उदासी में डूबी हैं
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ;
आंधी के पहले देखा है
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?

इस निश्चलता के अंदर से
ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

5. वंदे मातरम् कविता (अज्ञात रचनाकार) Hindi desh bhakti kavita-

छीन सकती है नहीं सरकार वंदे मातरम्,
हम ग़रीबों के गले का हार वंदे मातरम्।

सरचढ़ों के सर में चक्कर उस समय आता ज़रूर,
कान में पहुंची जहां झनकार वंदे मातरम्।

जेल में चक्की घसीटे, भूख से हो मर रहा,
उस समय भी बक रहा बेज़ार वंदे मातरम्।

मौत के मुंह में खड़ा है, कह रहा जल्लाद से,
भोंक दे सीने में वह तलवार, वंदे मातरम्।

डाक्टरों ने नब्ज़ देखी, सर हिलाकर कह दिया,
हो गया इसको तो यह आज़ार वंदे मातरम्।

ईद, होली, दशहरा, शबरात से भी सौ गुना,
है हमारा लाड़ला त्योहार वंदे मातरम्।

ज़ालिमों का जुल्म भी काफूर-सा उड़ जाएगा,
फैसला होगा सरे दरबार वंदे मातरम्।

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